गुरुवार, 21 अगस्त 2008

सुनंदा राय की कविता

(एक)

रोज टूटते हैं
पत्ते-
दरख्त नहीं मैं जानती हूं
पतझड़ के बाद का दुख ।


(दो)

सो जाती हूं तब
पैर दौड़ते हैं
तुम्हारे पीछे - पीछे ।
हाय री- गुड़िया रानी
कित्ता - कित्ता पानी ।


(तीन)

नुक्कड़ की दुकान से
दस रूपए का गुलाब खरीदकर
दिया उसने
और कहा - प्यार
वह एक शरीफ दुनियादार आदमी था।

(चार )

दो अंगुल की बुद्धि
मां की
चावल का पानी नापती रही
मैं दो अंगुल से देखती हूं
दुनिया
कितने पानी में ।

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